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सुनो, आज मैंने सुभग अल्पनाओं से आँगन सजाना सीख लिया।
विश्वास के प्रदीप को, आशाओं के घृत से प्रज्जवलित करना सीख लिया।।
तमपुंज को अब मैंने आलोकित करने की ठानी है
घनीभूत पीड़ा को मैंने प्रफ़ुल्लिता मैं बदलने की ठानी है
सुनो आज मैंने जीवन का अभिवादन करना सीख लिया।
बिसरी बिखरी यादों का नवनीड बनाना सीख लिया।।
सुनो, आज मैंने सुभग अल्पनाओं से आँगन सजाना सीख लिया...
प्रसून वाटिका से मैंने पुष्प रज चुनने की ठानी है
सौरभ समीर से आज मैंने सुरभि चुराने की ठानी है
सुनो, आज मैंने सूरज की प्रभा से अंधकार को मिटाना सीख लिया।
शब्दों की नफ़ासत से, भाषाओँ की हिफाज़त करना सीख लिया।।
सुनो, आज मैंने सुभग अल्पनाओं से आँगन सजाना सीख लिया...
ज्योत्स्ना की शुभ्र - आभा से अब स्वयं को प्रदीप्त करने की ठानी है
शुभ के संधान से स्वप्नों को साकार करने की ठानी है
सुनो, आज मैंने प्रतिकूलताओं को, अनुकूलताओं मैं बदलना सीख लिय।
समस्यांओं से समाधान की राहें निकालना सीख लिया।।
सुनो, आज मैंने सुभग अल्पनाओं से आँगन सजाना सीख लिया...
विश्वास के प्रदीप को, आशाओं के घृत से प्रज्जवलित करना सीख लिया।।
तमपुंज को अब मैंने आलोकित करने की ठानी है
घनीभूत पीड़ा को मैंने प्रफ़ुल्लिता मैं बदलने की ठानी है
सुनो आज मैंने जीवन का अभिवादन करना सीख लिया।
बिसरी बिखरी यादों का नवनीड बनाना सीख लिया।।
सुनो, आज मैंने सुभग अल्पनाओं से आँगन सजाना सीख लिया...
प्रसून वाटिका से मैंने पुष्प रज चुनने की ठानी है
सौरभ समीर से आज मैंने सुरभि चुराने की ठानी है
सुनो, आज मैंने सूरज की प्रभा से अंधकार को मिटाना सीख लिया।
शब्दों की नफ़ासत से, भाषाओँ की हिफाज़त करना सीख लिया।।
सुनो, आज मैंने सुभग अल्पनाओं से आँगन सजाना सीख लिया...
ज्योत्स्ना की शुभ्र - आभा से अब स्वयं को प्रदीप्त करने की ठानी है
शुभ के संधान से स्वप्नों को साकार करने की ठानी है
सुनो, आज मैंने प्रतिकूलताओं को, अनुकूलताओं मैं बदलना सीख लिय।
समस्यांओं से समाधान की राहें निकालना सीख लिया।।
सुनो, आज मैंने सुभग अल्पनाओं से आँगन सजाना सीख लिया...
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