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तुम खामोश थे 

सही को गलत
और गलत को सही कहा जा रहा था
वाकिफ तुम थे हर बात से
हर तोहमत से
फिर भी तुम खामोश थे

सच घुट रहा था
झूठ का बोलबाला था
उम्मीदों का दीया
बुझने ही वाला था
फिर भी तुम खामोश थे

ज़रूरत थी की तुम बोलते
अपने ज़िंदा होने का
कुछ तो सबूत देते
गलत को गलत कहते
मगर अफसोस
तुम खामोश थे

-आसिफ़ जारियावाला

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