बेच रहा था's image
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नदियों को एक न एक दिन मिल ही जाना है समंदर में

मगर वो बीच रास्ते में पहाड़ सालो से अफवाए बेच रहा था


कितनी तरक्की कर ली उस शख्स ने व्यापार में

आज वो छोटे बच्चो को बेचता है जो कभी खिलौने बेच रहा था


कौन भला सच बोला है आज तक सियासत में

मगर जूठ भी उसीका चला जो अपने मजहब को बेच रहा था


कितने खुश नज़र आते है ये गुलाब मेरे आंगन में

मगर वो शाम का वक्त छुपके छुपके उनकी उम्र बेच रहा था


पेड़ काटने वाला ही बदनाम होता है ज़माने में

मगर उसी शहर में बड़ी शान से कोई कागज़ बेच रहा था


ये कौन लोग है जो मिलावट करते है शराब में

तुमने कदर ही नहीं करी उस शख्स की जो शराब के बदले अपने गम बेच रहा था


कोई अच्छा खरीददार नहीं मेरी उदासी का इस शहर में

फिर एक दिन मेरी नज़र पड़ी उस दुकानदार पर जो कलम बेच रहा था।


✒️-Saurabh patel©️

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