
Share0 Bookmarks 13 Reads0 Likes
जिंदगी बहुत अजीब हो चली है
बहुत तन्हा सा हूँ
जिंदगी के इस दौर में
अकेला हो गया हूँ
ना दोस्त हैं न उनको बात करने का समय
दिन यूँ ही खाली से बीत जाते हैं
रातें काटने मुश्किल हो चली है
बाखबर से रहते हैं अपने आप से
खाली से हैं ये सासें
अब इनमें वो ठहराव नहीं
बहुत तन्हा सा हूँ जिंदगी के इस दौर में
सब कुछ होते हुए भी
कमी सी लगती हैं
बाजार में भीड़ के बावजुद सबकुछ
सुनसान सा लगता है
त्योहार में रौनक के बावजुद
सबकुछ शांत सा लगता है
बहुत तन्हा सा हो गया हूँ
जिंदगी के इस दौर में
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments