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जिंदगी बहुत अजीब हो चली है
बहुत तन्हा सा हूँ
जिंदगी के इस दौर में
अकेला हो गया हूँ
ना दोस्त हैं न उनको बात करने का समय
दिन यूँ ही खाली से बीत जाते हैं
रातें काटने मुश्किल हो चली है
बाखबर से रहते हैं अपने आप से
खाली से हैं ये सासें
अब इनमें वो ठहराव नहीं
बहुत तन्हा सा हूँ जिंदगी के इस दौर में
सब कुछ होते हुए भी
कमी सी लगती हैं
बाजार में भीड़ के बावजुद सबकुछ
सुनसान सा लगता है
त्योहार में रौनक के बावजुद
सबकुछ शांत सा लगता है
बहुत तन्हा सा हो गया हूँ
जिंदगी के इस दौर में
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