Share0 Bookmarks 47914 Reads1 Likes
हमने देखा है लोगो को,
प्यार, प्रतिको मे ढूंढते हुए,
कभी ताजमहल, कभी चित्तौड़,
कभी गहलौर के माँझी बनते हुए,
प्रतिको मे ढुंढोगे इसको तो,
फिर अंदर इसे ना पाओगे,
बस शिश नवा बाहर से ही,
मझधार मे रह जाओगे।
मै देख रहा ये रीत नई,
बाहर से रंगे ईश रंग,
अंदर मे सब मलीन बड़ी,
मंदिर मस्जिद सब भंग भंग,
भीतर मे सभी जो देव बसे,
बाहर हो व्यर्थ क्यो खोजते,
No posts
No posts
No posts
Comments