
परछाई बनकर पुरुष के साथ चली,
एक नारी पीछे रहकर भी समाज की बुनियाद बनी।
देश ने जब जब बलिदान मांगा,
लक्ष्मीबाई बनकर मातृभूमि की ढाल बनी।
सहनशील और शालीन तो नारी के गुण हैं,
दुर्गा की छाया वो शक्ति में भी निपूर्ण है।
श्री बन घर घर खुशियां लाती वो,
सरस्वती सी ज्ञान के साथ हर रूप में वो संपूर्ण है।
भारत के इस भूमि ने,
हर रूप में नारी को पाया है।
कही सीता सी सादगी है, तो
कहीं चंडी के रोष की माया है।
गार्गी , मैत्री , उभय भारती
ज्ञान की गंगा प्रवाह बनी।
घर की मर्यादा के साथ साथ
शिक्षा की भी पहचान बनी।
वेदों ने पुराणों ने नारी को पूजनीय स्थान दिया,
एक समय ऐसा भी आया की मानव अपनी ही संस्कृति भूल गया।
तब हुआ उदय कदाचार और कुप्रथाओं का,
नारी बन गई जागीर और पुरुष को स्वामी मान लिया।
वह काल था समाज के पतन का,
उसके आंसुओं के , हिम्मत के जतन का।
एक किरण थी आशा की उसके मन में,
की अंत होगा दुराचार के अहम का।
एक नारी की कहानी बस यही नही रुकती है,
अपने जान और सम्मान के लिए हर रोज वो लड़ती है।
मां के कोख से लेकर जीवन के हर मोड़ तक,
विश्वास का हाथ थामे हर रोज वो आगे बढ़ती है।
ऊंचाइयों से दोस्ती की है अब उसने,
क्षितिज को चूम रहे है आज उसके सपने।
डरती नही है अब वो ठोकरों से,
जबसे खोल लिए है अपने पंख उसने।
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