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मैं चला...
और चलता रहा..
बहुत बाधाओं को क्षत-विक्षत कर..
मैं निरतंर बढ़ता रहा..
और पहुँचा एक ऊँची जगह..
एक क्षितिज पर..
वो जगह..
जो लगती थी कभी सबसे ऊँची..
मगर जब पहुँचा..
मैं क्षितिज पर..
वहाँ दिखा मुझे एक नया संसार..
फिर जग उ
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