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कौआ चौंह जग काऊँ काऊँ ते,
कोयल सुरील सुर कहाँ सुहाय।
वेद शास्त्र तब कौनय पढाय,
जब जग मात्र श्रोता रह जाय।
जब शव्द ही हिय न तौले जाय,
सुन भाषण को भाषण दे जाय।
कोयल सुरील सुर कहाँ आय,
जब स्वान मुख ही भौंके जाय।
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