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"प्यार का खेल"
सृष्टि रचयिता खेल रचा जो
जिसको खेल गर तुम जाओगे
स्नेह प्रीति लगाव अनुरक्ति भक्ति
और प्रभु आस्था भी पा जाओगे
गर ह्रदय से खेलोगे इस खेल को
विजयी दोनो ही कहलायेंगे
किया छल अगर किसी ने तो
हार तुम दोनों ही तब जाओगे
अंतिम पड़ाव तक जब जाओगे
आत्म स्नेह भर तुम तब लाओगे
ह्रदय दोनों का तब हर्षित होगा
हिय बिच अफ़सोस न पाओगे
खेल को जब तुम खत्म करोगे
दोनो विजेता तब बन जाओगे
प्यार का खेल खेल न पाओगे
समाज मे स्वार्थी कहलाओगे
प्रभु का रचा एक मात्र खेल
ज़िसे दो खिलाडी खेलते है
हिय से खेले दोनो जीतते है
छल से खेले दोनो हारते है
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