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प्रकृति की न समझ सके तो..I
अपनी हसरत मत कहना ..II
एक वृछ न लगा सको तो..I
ठंढ़ी छाव से मत कहना ..II
सूर्य धूप से जूझ रही हो तो ..I
छत की हालत मत कहना..II
धरती जल बिन सूख रही हो तो..I
वादल से बरसो मत कहना ..II
भू गर्भ जल नीचे जाये तो..I
अपनी दहशत मत कहना ..II
अब भी गर न समझ सको तो..I
ऋतु कहर को मत कहना ..II
जहरी वायू से शांस रुके तो ..I
प्राण वायू से मत कहना ..II
गांव तलक ये कैसे पहूँची ..I
प्रकृति नफरत मत कहना ..II
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