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क्या क्यों कैसे जैसे ?
कुछ घटनाएं जीवन में
ऐसी घटित हो जाती हैं।
क्या क्यों कैसे जैसे प्रश्न-
चिन्ह खड़े कर जाती हैं।।
देखी न सुनी होती कभी
जस रहस्य रह जाती हैं।
प्रथम प्रश्न मन में आता
क्या में हम खो जाते हैं।।
क्या अद्भुत लीला जो थीं
हम कभी समझ न पाते हैं।
करते कोशिश क्यों ढूंढने की
पर उलझे ही रह जाते हैं।।
क्यों का उत्तर पा न पाते
तब प्रभु आस लगाते हैं।
हम क्या क्यों को छोड़-छाड़ि
तब कैसे पे आ जाते हैं।।
कैसे है यह संभव घटना
इसमे हम खो जाते है।
लगता है असंभव वो जो
सम्भव कैसे हो जाता है।।
क्या क्यों कैसे मिथ्या रह
बस जैसे ही रह जाता है।
जैसे सम्भव जीवन-मृत्यु हैं
वैसे सब सम्भव हो जाता है।।
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