
जीवन
खवाहिश नही मुझे मशहुर होने की।
बस लोग मुझे पहचानते रहे काफी है।
अच्छे अच्छा और बुरे बुरा ही काहेंगे ।
क्योंकि जिसकी जितनी जरुरत हो हमसे
वो उतना ही पहचाने मेरे लिये काफी है
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब
शामें कटती नहीं, और साल गुज़र रहे ..!!
एक अजीब सी दौड़ है ये ज़िन्दगी,
जीत जाओ तो अपने पीछे छूट जाते हैं,
और हार जाओ तो अपने ही छोड़ देते हैं।
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपने ऐब में रहना ।।
ऐसा नहीं हो सकता कि मुझमें कोई ऐब नहीं
पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन
क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने खुदको न बदला
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..
वक़्त पीछे ही पड़ गया मगर पथ न बदला
सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!
सुकून की बात मत अब कर ऐ ज़िन्दगी ...
बचपन वाला इतवार भी ज़रुरत बना डाला |
जीवन की भाग-दौड़ में -रंगत खो गयी
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो गयी ..
वो भी सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
बिना मुस्कुराये ही न जाने कितनी हो गयी
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