अपनी सख्सियत, किसी से मिलती न थी..,
थी दिल में खिड़की, पर खुलती न थी..I
हम थे अपने दिल के ही मालिक..,
किसी की भी हमपे, चलती न थी..II
मिला एक वो , सख्सियत बदल गयी..,
बंद थी जो खिड़की, वो खिड़की खुल गयी..I
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