
Share3 Bookmarks 335 Reads3 Likes
अपनी सख्सियत, किसी से मिलती न थी..,
थी दिल में खिड़की, पर खुलती न थी..I
हम थे अपने दिल के ही मालिक..,
किसी की भी हमपे, चलती न थी..II
मिला एक वो , सख्सियत बदल गयी..,
बंद थी जो खिड़की, वो खिड़की खुल गयी..I
मालिक बदले दिल के, मर्जी बदल गयी..,
तब बदले थे हम, अब वो बदल गयी..II
पहले तो दिन होता था, या होती रात..,
शाम कभी हमारी भी, ढलती न थी..I
समय के इस दौर में, बदल गए जज्बात..,
इसमें तो हमारी, कोई गलती न थी..II
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments