
एक ऐसी वो लड़की थी
देख रचना श्रष्टि रचयिता हिय समझ न पाया था
चित्ताकर्षक रचना जिसने दिलको भरमाया था
आकर्षक थी या रब ने उसे आकर्षक बनाया था
किस्मत थी मेरी या रब ने उसे उस दिन मिलवाया था
सुध बुध खोई मन न उस दिन गगन समाया था
देख ऐसी चित्ताकर्षकता नयन अस्क भर लाया था
कौन तपस्या कीथी उसने जो ऐसा योवन पाया था
मैं उस से भरमाया था उसने माया से भरमाया था
मन हर्ष से हर्षाया था ह्र्दय ने चित्र सजाया था
न रहा खुद पे काबू योवन ने जो तीर चलाया था
वापस जब घर को आया बिचार वही भर लाया था
निद्रा उस दिन न आयी थी ह्रदय भी बिचलया था
दिल हर्ष से हर्षाया था जब वो भी दिन आया था
किस्मत के मारे दिल में तब प्यार यूँ उमडाया था
बात समझ में आयी थी हम एक दूजे पर मरते थे
पाने को प्यार एक दूजे का सालों से आहें भरते थे
जैसे देख बेचैनी सावन की, पपीहा गाना गाता था
जिसको दिल ने चाहा था पर बोल न उसको पाया था
बैसे ही उस दिन वो खुद ही चल कर आयी थी
जैसे प्यासे राही के पास कुआं ही चलकर आया था
तनहा अकेले रहते है, प्यार तुम्हे ही करते है,
प्यार हमारा रहा नहीं, कह कह कर हमें बताती थी
सुन सुन कर बाते उसकी, दिल यूँ ही भर जाता था
रंग चातुर्य ला जाता था, धोखे से धोखा खा जाता था
देख देख तन्हाई उसकी, दिल दुःख से दुःख जाता था
ह्रदय में तब स्नेह उमड़, मन यूँ ही भर जाता था
हमको वो यूँ बोध कराती, हम भी तुम पर मरते है
दिल ही दिल में चाहा करते, पर कहने से डरते है
पूछ पूछ के हार गया मैं, पर उसको दया न आयी थी
ऐसी क्या गलती हो गयी मन ही मन में सोचा करता
चतुर नारि चतुराई उसकी सच्चे मन को समझ न आयी
रच षड़यंत्र दिल ही दिल में उसने मुझे फसाया था
कभी खुशी कभी गम, वो चेहरे से झलकाती थी
कोई न जाने वो किस, दुःख को यूँ छिपाती थी
दुखी दुखी से रहकर वो, जीवन यूँ ही गमाती थी
किसने ऐसा दर्द दिया, जो सबको न बतलाती थी
कभी हंसाती कही रुलाती, कभी कभी मूक हो जाती थी
ऐसा रूप न उसका भाता, रवैया उसका समझ न आता
ऐसे ऐसे जाल बिछा वो, सबको मोहित कर जाती थी
ऐसे बैसे रूप दिखा के, वो जन जन को बहलाती थी
मै अपनी सुध बुध खोया था, प्यार में उसके रोया था
उस वेवफा के प्यार में ,मुझको यह सौगात मिली थी
पागलपन को वर्गीकरण कर, जन जन लतीफे कसते थे
कोई बीस कोई पचास किसी ने, तो सौ प्रतिसत बतलाया था
देख-देख करतूते उसकी , सारा जग बौराया था
धिक्कार करूँ उस नारी को, जिसने ऐसा खेल रचाया
कर बिश्वास उस नारी पर, मैंने तो धोखा खाया था
उसकी यह चतुराई देख- देख के, प्यार भी सरमाया था
भोलेपन का चोला ले खुद को दुखी दिखाती थी
सबको वो यूँ बोध कराती जैसे दुनिया उसे सताती
खुद नारी होकर के भी, नारी सम्मान न करती थी
सज्जन बन वो दूजे की बाँहों में आहें भर्ती थी
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