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बीज से वृक्ष
था कभी जो निरअंकुरित
सदभाव मे अंकुरित हो गया
सह पा सद जल,मृदा उपजा
प्रतिदिन ही अपनी साख बढाय
जिस जल,मृदा उपजा था वो
उसको ही अब वो तुच्छ बताये
जस जस उसकी साख बढे
तस तस घ्रणा जल,मृदा लाख गढे
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