
Share0 Bookmarks 41 Reads1 Likes
"जो उम्र थी जिन्दगी लुत्फ़ मुस्कुराने मे" !
"बाकी बची गुजरे शायद सिस्कराने मे" !
त्रप्त होती थी इन्द्रिया तब सताने मे,
मन हर्ष से हर्षता फिर फिर मनाने मे..I
यही थी उम्र उल्लासी लुत्फ़ लेने की,
गुजरे पल शायद न आयेंगे ज़माने मे..II
वर्षा भीगी मिट्टी को दुजे पीठ रगडने मे,
खेल खेल मे लड़ने और झगड़ने मे ..I
खुद सैतानी कर के दुजे हंसी उड़ाने मे,
गुजरे पल शायद न आयेंगे ज़माने मे ..II
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments