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"आधुनिकीकरण"
सौर्य स्वर्णिम रचना जो प्रभु
धूधू धुमिल अब होती जाय
सुखी भविष्य के लोभन म
कल पे आज को देई गमाय
प्रभु कह पथ भूलि भालि के
जस जग मानव ज्ञान बढ़ाय
जीवन रक्षक छोंडि छांडि के
बिशुद्ध बिलासिता को अपनाय
रसायन बम जब शक्ति बताय
सिवाय अर्धग्नी को देई भूलाय
चहुं ओर जब जग बढ़े बलाय
प्रकृति प्रकोप भी समझ न आय
मनी फ्लांट जब जड़ी बताय
हिम संजीवनी खर कहलाय
जग पभु लीला समझ न आये
हियमे ब्यथा बढ़ति तब जाय
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