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कहते सुना है हमने,
पहले वो तुम्हे रोज़ देगा,
फिर तुम्हारी रोज लेगा...
सच कहूं तो देखा है हमने,
जहां स्वार्थ की खेती होती है
वहां मोहब्बत की बरसात कभी नहीं होती है
ये साँसे हैं तो उन्हीं की बदौलत
ना हमनें उन्हें कभी कोई गुलाब दिया
ना ही उन्होंने हमें कभी कोई गुलाब दिया
नौ महीने कोख में गुलाब की तरह रख कर हमें
अपने संस्कारों से सिंच कर ज़िन्दगी को गुलाब की तरह है महकाया
गुलाब दे देने से ग़र मुहब्बत मुकम्मल हो जाता
तो हर बाग का माली आज किसी दिल का शहजादा होता
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