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मूर्ख
मैं मूरख और दुराचारी क्या समझूं रिश्तो का मोल
विचलित और विकृत में मुख से कैसे बोलूं मीठे बोल
क्यों परिभाषा प्रेम की मुझको समझ ना आई
जब करनी थी दीनता तब मैंने की चतुराई
अंधकार का छोर पकड़ मैं ढूंढ रहा प्रकाश
जिसने दिया प्रेम भाव उसको ही किया निराश
कैसा सौदागर हूं मैं घाटे का सौदा कर बैठ
मैं मूरख और दुराचारी क्या समझूं रिश्तो का मोल
विचलित और विकृत में मुख से कैसे बोलूं मीठे बोल
क्यों परिभाषा प्रेम की मुझको समझ ना आई
जब करनी थी दीनता तब मैंने की चतुराई
अंधकार का छोर पकड़ मैं ढूंढ रहा प्रकाश
जिसने दिया प्रेम भाव उसको ही किया निराश
कैसा सौदागर हूं मैं घाटे का सौदा कर बैठ
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