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जिस्का विशाल विस्तार हो हर चेहरे को अलग पहचान हो जीवन जिस्की होंड से मेरीयमान हो जिस बिन बंजर बीया-बान हो उन निगाहो पर गोष्ठी आज करेंगे..... मृग नयनी लगे कभी कभी झील सी निर्मल हो कभी गहरी सागर सी और कभी नशीला जाम हो वर्णन में जिसके शब्द पड़ जाए कम हो उन निगाहो पर गोष्ठी आज करेंगे...... हर मूरत का जो ताज हो छिपाए
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