
रोज सुबह तुम्हारे फोन की घंटी के साथ
मेरी नींद की तंद्रा टूटती है
रजाई से बाहर हाथ
गोताखोर की तरह निकलता है
फोन को चारों तरफ ढूंढता है
अधखुली आंखों के सामने
फोन के स्क्रीन पर तुम्हारे नाम को फ्लैस होता देखकर
मेरी सारी स्थिति ऊर्जा गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है
शरीर का रजाई से संधि विच्छेद हो जाता है
अंगड़ाई लेते हुए अलसाई शरीर के साथ
औपचारिक शब्दों के द्वारा बातचीत का आगाज होता है
तुम्हारी मनमोहक मृदुल ध्वनि का शंखनाद
जैसे मेरे अंतःकरण तक पहुंचता है
मेरे हृदय गति को बढ़ा देता है
समय का सदुपयोग करते हुए
विचारों का आदान-प्रदान
हम शब्दों के ज्वालामुखी उद्गार के द्वारा करते जाते हैं
समय कितनी तेजी से बीत जाता है
यह तुम्हारे फोन रखने के बाद ही पता चलता है
फिर मेरे चारों तरफ सन्नाटा छा जाता है
अपने अंदर के ज्वार भाटा को शांत करके
मै फिर से तुम्हारे फोन का इंतजार करने लगता हूं
लगता है
इंतजार ही मेरा प्रारब्ध है।
-At
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