
मैं आज़ाद आसमा का आज़ाद पंछी,
आज़ादी की मैं बात करूँ ।
जो धर्म, समाज की शिक्षा देते,
उन सब से मैं सवाल करूँ ।
हो मंगल सब घर में तुम्हारे,
मुझे देवी बना कर पूजते हो,
जब बात ईमान पर आए मेरे,
मुझे ही ताने देते हो।
करे हैवानियत!
करे हैवानियत कोई और मुझ पर,
तुम समस्या ध्यान से सुनते हो,
जब बात फैसले की आए मेरे,
सारा दोष मुझ ही पर मडते हो।
कर बंद पिंजरे में तुम मुझको,
ऊंची उड़ान भरने को कहते हो,
ख़ुद आज़ादी का जश्न मनाते,
मेरी आज़ादी को तोलते हो।
मैं आज़ाद आसमा का आज़ाद पंछी,
आज़ादी की मैं बात करूँ ।
जो शक चरित्र पर मेरे करते,
उन सब से मैं सवाल करूँ ।
बनके दोस्त, बहन, माँ, पत्नी तुम्हरी,
पग - पग पर तुम्हारा साथ दिया,
ना कुछ मांगा, ना कुछ चाहा,
तुमने मुझ पर ही अत्याचार किया।
देके अग्नि परीक्षा!
देके अग्नि परीक्षा तुझको मैंने,
मेरी स्वच्छता का प्रमाण दिया,
चंद लोगों के कहने पर,
तोड़ वचन तुमने,
मेरा ही त्याग किया।
जकड़ के समाज, धर्म की बेड़ियों से,
मुझको लाचार, कमजोर तुमने किया,
खुद की दोगली परंपराओं से,
मेरी आज़ादी को तुमने कैद किया।
मैं आज़ाद आसमा का आज़ाद पंछी,
आज़ादी की मैं बात करूँ ।
तुम्हारे बनाए इस समाज से,
मेरे हक्क की मैं फ़रियाद करूँ ।
~ अरुण जांगिड़
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