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मुस्कुराते देख पूछ लेते हैं लोग,
आपकी आँखें नम क्यूँ हैं?
भीड़ में खड़े होकर भी
तन्हाई का सितम क्यूँ है?
ठिक-ठाक तो चल रही है ज़िंदगी,
फिर दिल में पल रहा ये ग़म क्यूँ है?
जा चुके हैं जो दूर ज़िंदगी से
उनके लौट आने का भरम क्यूँ है?
टूट चुके ख़्वाबों में ही
उलझा ये दिल हरदम क्यूँ है?
- आरती गिरि
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