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हर मौत देखने के बाद, मन उठ से जाता है जिंदगी से!
इतनी मेहनत , कई सपने, इतनी उम्मीदें, कुछ अपने,
छोड़कर ही जाना है जब एक दिन ,
वो दिन , जो न तुम्हे पता है ना किसी को।
वो दिन भी आयेगा बिन बताये, बिन बुलाये।
अजीब सा लगता है सोच के...
बुज़दिल से जी रहे हैं यार हम सब, डरे हुए!
किस से,कब और कौन सी मुलाक़ात आखरी हो , किसे पता है?
घर , माँ, भाई -बहन, अधूरा इश्क़ ..
सब सूना हो जाएगा जिस दिन जाओगे तुम,
हमेशा के लिए।
जी क्यों रहे हैं फिर हम ?
हमारी मौत के बाद किसी की ज़िंदगी नही रुकती
रुकनी भी नही चहिये,
तो क्यों हो जाते हैं लोग अपने?
जिन लोगों को ज़िन्दगी भर जोड़ा है,
ये जो घर जिसमे मेरे अपने हैं, कुछ घर से बाहर हैं,
सब टूट जाएंगे एक दिन!
क्यों जोड़े जा रहे हैं हम रिश्ते ??
क्या मतलब है यार ज़िंदगी का...
डर है, गुस्सा है,
ज़िंदगी ऐसी क्यों है यार तू???
कितना कुछ कहना है लोगों से,
कैसे कहेंगे मौत के बाद ,
कह भी पाएँगे या नही??
जीते जी हिम्मत नही है अंदर।
मगर तू प्यारा तोहफा है
अभी भी,
क्योंकि तू मुझे माँ से मिली है,
बस।
-त्रिशा।
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