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खुदा को एक दिन न जाने क्या हुआ,
किसी पाक से ख्याल ने उसके जेहन को छुआ
उसने अपने औजारों को उठाया...
और फरिश्तों को हुक्म देकर एक साँचा उसने बनवाया
समंदर के किनारे बैठ कर बनाई तेरी आँखें उसने,
बैठा जो गंगा किनारे तो तेरी रूह को बनाया..
कोयल की बोली सुन कर बनाया तेरी आवाज को,
कड़कती बिजली से बनाया तेरे मिजाज़ को....
काली घटाओं से रंग चुरा कर तेरी जुल्फों को बना डाला,
गुलाब की पंखुड़ियों से तेरे होठों को सजा डाला...
शाम होने को आ गयी, सूरज क्षितिज पे चमक रहा था,
उस सुनहरी शाम में खुदा तुझे रंग रहा था.....
खत्म कर के काम अपना जब तुझे सांचे में ढाला,
गुरूर में आके खुदा ने अपने हाथों को चूम डाला...
किसी पाक से ख्याल ने उसके जेहन को छुआ
उसने अपने औजारों को उठाया...
और फरिश्तों को हुक्म देकर एक साँचा उसने बनवाया
समंदर के किनारे बैठ कर बनाई तेरी आँखें उसने,
बैठा जो गंगा किनारे तो तेरी रूह को बनाया..
कोयल की बोली सुन कर बनाया तेरी आवाज को,
कड़कती बिजली से बनाया तेरे मिजाज़ को....
काली घटाओं से रंग चुरा कर तेरी जुल्फों को बना डाला,
गुलाब की पंखुड़ियों से तेरे होठों को सजा डाला...
शाम होने को आ गयी, सूरज क्षितिज पे चमक रहा था,
उस सुनहरी शाम में खुदा तुझे रंग रहा था.....
खत्म कर के काम अपना जब तुझे सांचे में ढाला,
गुरूर में आके खुदा ने अपने हाथों को चूम डाला...
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