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खुदा को एक दिन न जाने क्या हुआ,
किसी पाक से ख्याल ने उसके जेहन को छुआ
उसने अपने औजारों को उठाया...
और फरिश्तों को हुक्म देकर एक साँचा उसने बनवाया
समंदर के किनारे बैठ कर बनाई तेरी आँखें उसने,
बैठा जो गंगा किनारे तो तेरी रूह को बनाया..
कोयल की बोली सुन कर बनाया तेरी आवाज को,
कड़कती बिजली से बनाया तेरे मिजाज़ को....<
किसी पाक से ख्याल ने उसके जेहन को छुआ
उसने अपने औजारों को उठाया...
और फरिश्तों को हुक्म देकर एक साँचा उसने बनवाया
समंदर के किनारे बैठ कर बनाई तेरी आँखें उसने,
बैठा जो गंगा किनारे तो तेरी रूह को बनाया..
कोयल की बोली सुन कर बनाया तेरी आवाज को,
कड़कती बिजली से बनाया तेरे मिजाज़ को....<
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