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मैं कौन ह्ँ?
मनुष्य की यह जिज्ञासा...
क्या में आदि हंँ?अंत या अनंत हँ?
क्या मैं नभ का विस्तार ....
या धरा सा सहज प्रकृति का आभास।
कभी जडता है। कभी चैतन्य का होता संचार।
क्या मैं माया का पाश ह्ँ?
या ममता की सजीली डोर हूँ?
क्या जीव सहज लज्जा ह्ँ?
या क्षुधा, तृष्णा, जिजिविषा का रूप मात्र हूँ।
क्या बिंदु का रूप धरूँ? या रेखा चित्र सहज हू्ँ।
रस तत्व का महत्व क्या जान्ँ?
रंगों का प्राधान्य क्या पहचानूँ?
मैं कौन हूँ? मेरा अस्तित्व क्यों है अनोखा?
तभी सर्वव्यापी शक्ति की उ
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