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जाते-जाते जब मुड़ कर देखता हूँ
मैं राह पर अपने ही निशां ढूंढता हूँ
निशां ये सारे मिट जाएंगे
वक़्त की लहरों में धूल हो जाएंगे
अक्सर अकेले में यही सोचता हूँ
फिर नज़रों को उठा कर
जब किसी को ढूंढता हूँ
तुम्हें इन्हीं रास्तों पर देखता हूँ
मिट जाएंगे सारे निशां मेरे जाते ही भले
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