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तेरी मेरी दास्ताँ जो किसी ने सुनी नहीं
कुछ बातें जो कभी अल्फ़ाज़ो में बुनी नहीं
सोचा है कुछ लफ़्ज़ चुरा के वक़्त से
उन सब बातों को अब ज़ुबान मिले
जो रह गयी थी पीछे कही
या जो मेने तुमसे कभी कही नहीं।
ये जो मंज़र है जो माज़ी है
वो तो फिर ना आएगा
वक़्त के आगे बेबस है सब
बस उस पर किसी की चली नहीं।
फिर किसी क़िस्से में ज़िक्र कर के
नाम जब तेरा आएगा
तेरी मेरी दास्ताँ ख़ुद वक़्त ही पढ़ जाएगा।।
-अनुजा
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