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किसी ने कहा कि,
जिंदगी धीरे-धीरे मरने का नाम है,
फिर,
ना जाने क्यों इंसान इस बात से अनजान है,
ना जाने क्यों वो देता खुद को ना ख़तम होने वाला काम है,
ना जाने क्यों वो डरता होने से बदनाम है,
ना जाने क्यों वो सोचे जैसे उसे पता नहीं के यही इसका अंजाम है,
ना जाने क्यू वो करे रोज़ हज़ारों गलत काम है,
ना जाने क्यू वो दे इसको तरह-तरह के नाम है,
ना जाने क्यों इंसान सोच के वो नाकाम है,
ना जाने क्यों माने के उसे भरनी ख़ाली कोई स्थान है,
ना जाने क्यों वो जिंदगी के अंजाम से अंजान है,
ना जाने क्यों इंसान माने की जिंदगी धीरे-धीरे मरने का नाम है,
असल में ,
जिंदगी तो खुल के जीने का नाम है ।……..
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