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अनगिनित रातों के अंधेरे
एक सुबह की ख़्वाब में
करवट ले रही है।
रात कट के रात ही आ रही है
खालीपन में
कोई इंतजार ठहर रही है।
टिमटिमाते तारों में,
चांदनी उजालों
के चांद से जज़्बात
मेरे साथ जग रहे हैं।
पुकार रही है हवाएं,
मुझसे टकरा कर मुझे
खामोश कौन है यहां
मेरी बात हो रही है।
वो कौन सी सुकूं है,कहां है
बहुत चाहत में उनकी
बेचैनियाँ तड़प रही हैं।
ये समुंदर क्यों साथ रहता है मेरे
मुझसे मेरी तन्हाई भी बिछड़ रही है...
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