
जहां घंटियों की ताल से आंखें खुले ,पलके झुके
जहां रात भी खामोश हो तो महादेव का ही नाम जपे
मैं उस शहर की दास्तां जब कभी तुमसे कहूं
मैं इश्क लिखूं तू बनारस समझे ।।
जहां घाट किनारे हाथ पकड़े , मैं भी चलूं तू भी चले
जहां धार भागीरथी की भी निर्मल तेरे पांव को छूकर बहे
मैं उस शहर की दास्तां जब कभी तुमसे कहूं
मैं इश्क लिखूं तू बनारस समझे ।।
जहां महादेव की शंखनाद भी तुझ से आकर मेरा नाम कहे
जहां कोई तेरा ना भी हो तो , सब कुछ अपना सा लगे
मैं उस शहर की दास्तां जब कभी तुमसे कहूं
मैं इश्क लिखूं तू बनारस समझे ।।
जहां दिल से दिल की जब बात हो तो ,
आंखें सुने धड़कन कहे
जहां घाट से नदिया मिलते ही,
नजरें मिलें पलके झुके
मैं उस शहर की दास्तां जब कभी तुमसे कहूं
मैं इश्क लिखूं तू बनारस समझे ।।
मैं उस शहर की दास्तां जब कभी तुमसे कहूं
मैं इश्क लिखूं तू बनारस समझे ।।
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