Share0 Bookmarks 198171 Reads1 Likes
रेत माटी से प्रेम करे
कहे प्रेम को प्रेम से प्रेम सजाए
खत लिखता है माटी को;
लेके नागफणी से उधार जो पानी
मै नेह को नीर से धीर धराता था
भावना का तरल था सरकता प्रिये
रिसता रिसता हुआ खोखल परतो से मेरी
था छितिज से मै नाता तोड़ चुका
खोखल जीवन की परतो को मोल चुका
फिर एक पल को जो सहसा
राही के जूतो के तलवो मे फस के
संघर्षो के आँचो के जलवो मे तप के
उतरा जो जूतो के तलवो की डोली से
पहली बार पावँ पधारे हरातल
कण वर्षा के अमृत से बरसे थे मानो
तुम समीर संघ खेली, खेली खेली उड़ी थी
रुक के बदरा को डिबिया मे भर के तुम अखियाँ
अखियाँ काजर काजर करती थी क्यो माटी
प्रत्यंचा प्रेम की ताने इत्र घाघर चोली
पारंगत यौवन की बरखा सुधा रानी
ओ बरखा सुधा रानी, क्या याद है तुमको
वो अड़हुल की डाली के नीचे जा मिलना
लाल लाल गाल ललत्व अड़हुल हराना
चुपके चुपके छया ओढ़े चाँदनी पोखर किनारे
अपने प्रेम तरल मे वो रेत घुलाना
जड़
कहे प्रेम को प्रेम से प्रेम सजाए
खत लिखता है माटी को;
लेके नागफणी से उधार जो पानी
मै नेह को नीर से धीर धराता था
भावना का तरल था सरकता प्रिये
रिसता रिसता हुआ खोखल परतो से मेरी
था छितिज से मै नाता तोड़ चुका
खोखल जीवन की परतो को मोल चुका
फिर एक पल को जो सहसा
राही के जूतो के तलवो मे फस के
संघर्षो के आँचो के जलवो मे तप के
उतरा जो जूतो के तलवो की डोली से
पहली बार पावँ पधारे हरातल
कण वर्षा के अमृत से बरसे थे मानो
तुम समीर संघ खेली, खेली खेली उड़ी थी
रुक के बदरा को डिबिया मे भर के तुम अखियाँ
अखियाँ काजर काजर करती थी क्यो माटी
प्रत्यंचा प्रेम की ताने इत्र घाघर चोली
पारंगत यौवन की बरखा सुधा रानी
ओ बरखा सुधा रानी, क्या याद है तुमको
वो अड़हुल की डाली के नीचे जा मिलना
लाल लाल गाल ललत्व अड़हुल हराना
चुपके चुपके छया ओढ़े चाँदनी पोखर किनारे
अपने प्रेम तरल मे वो रेत घुलाना
जड़
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments