रेत माटी और प्रेम (भाग-१)'s image
IPL 2021Poetry3 min read

रेत माटी और प्रेम (भाग-१)

Ansh kr. SinghAnsh kr. Singh September 30, 2021
Share0 Bookmarks 267 Reads1 Likes
रेत माटी से प्रेम करे
कहे प्रेम को प्रेम से प्रेम सजाए
खत लिखता है माटी को;
लेके नागफणी से उधार जो पानी
मै नेह को नीर से धीर धराता था 
भावना का तरल था सरकता प्रिये
रिसता रिसता हुआ खोखल परतो से मेरी
था छितिज से मै नाता तोड़ चुका
खोखल जीवन की परतो को मोल चुका
फिर एक पल को जो सहसा 
राही के जूतो के तलवो मे फस के
संघर्षो के आँचो के जलवो मे तप के
उतरा जो जूतो के तलवो की डोली से
पहली बार पावँ पधारे हरातल 
कण वर्षा के अमृत से बरसे थे मानो
तुम समीर संघ खेली, खेली खेली उड़ी थी
रुक के बदरा को डिबिया मे भर के तुम अखियाँ 
अखियाँ काजर काजर करती थी क्यो माटी 
प्रत्यंचा प्रेम की ताने इत्र घाघर चोली
पारंगत यौवन की बरखा सुधा रानी
ओ बरखा सुधा रानी, क्या याद है तुमको 
वो अड़हुल की डाली के नीचे जा मिलना
लाल लाल गाल ललत्व अड़हुल हराना
चुपके चुपके छया ओढ़े चाँदनी पोखर किनारे
अपने प्रेम तरल मे वो रेत घुलाना
जड़ दुबो को प्रेम पता है हमारा
परखता था बरगद नित नयनचल हमारा
नदिया का तट वो कब से है आतुर
गुलमोहर के पत्तो से
छनी चाँदनी हो गुलाबी 
नदिया का तट वो कब से है आतुर
होने को चाँदी से प्रेम गुलाबी,
होने को चाँदी से प्रेम गुलाबी 
हर जलघट पे हु बैठा इन्तजार मे माटी
पोखर का जलमन हो, नदिया किनारा
पारावर के तट से झूले झूले हर घाटी
शाद्वल किनारो से आश लगाता हू 
हिय हलचल सी होती है जोर से पल पल
विलम्भ का कारण बताओ ना माटी
क्या पाषाण पिता ने किया पतझड़ मे नजरबंद
या अनावृष्ट की तड़पन से सूखी भर भर पड़ी हो
अपने दरौ से प्रेम कली कनखाओ ना माटी
विलंभ का कारण बताओ ना माटी
क्या जगती के खेतो की चिंता ने रोका
माह फागुन का जोह कराओ ना माटी
विलंभ का कारण बताओ ना माटी
क्या कही नन्हे हाथो की गुड़िया बन घूँघट सजी हो
धरा गिर टूटो ना चूर चूर 
मुझमे मिल जाओ ना माटी
अंश अंश हृदय का किया अंकित जो तुझमे
विलंभ का कारण बताओ ना माटी।।

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts