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एक दिन चलो चलते है संगम के पास,
संगम की रेती से एक घर बनाते है,
और फिर शाम आ जाए,
फिर आसमा तक चलकर तारे लाये,
और मिलकर घर को सजाते है,
एक दिन लहर आई,
और बोली की रेती तो मेरी और ये घर मुझे दो,
और फिर क्या वो घर गया,
फिर हम दोनो निकल पड़े ,
अपने घर को ढूढ़ते हुए, नदी के साथ और सागर तक,
और आसमा से तारे कहते रहे की हम मुकम्मल हो गये।
संगम की रेती से एक घर बनाते है,
और फिर शाम आ जाए,
फिर आसमा तक चलकर तारे लाये,
और मिलकर घर को सजाते है,
एक दिन लहर आई,
और बोली की रेती तो मेरी और ये घर मुझे दो,
और फिर क्या वो घर गया,
फिर हम दोनो निकल पड़े ,
अपने घर को ढूढ़ते हुए, नदी के साथ और सागर तक,
और आसमा से तारे कहते रहे की हम मुकम्मल हो गये।
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