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यूँ ही इतनी प्रतिक्रिया करूँ |
किस बात का अहंकार धरूँ |
हवा, पानी, प्रकृति तुम्हारी |
शस्य श्यामलां धरती तुम्हारी |
हर जीवंत कार्य में शक्ति तुम्हारी |
ना जाने क्यूँ अविश्वास करूँ |
किस बात का अहंकार धरूँ |
मानव जीवन की कल्पना तुम्हारी |
सभ्यता और संस्कृति तुम्हारी |
हर साँस भी है देन तुम्हारी |
फिर क्यूँ मैं माया में फंसू |
किस बात का अहंकार धरूँ |
यूँ ही इतनी प्रतिक्रिया करूँ |
- by Ankur Aggarwal
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