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मिरे लिए जे़र-ए-लब तबस्सुम
उनकी उफ्फ़...,
हर राहों को मंजिल बना लिया,
सोचा नहीं इतनी अज़ाब होगी
मंजिलें,पास थी मुक़ाम मगर
मुहब्बत से थी फासले, उन राहों
में अन्जान् सा भटक गया।
मुस्कुराने की वजह था मैं मगर
अनभिज्ञ , क्या यही प्यार है?
अब यही शिकायत रह गई उनसे।
~अंकित
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