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जीवन्त अतीत की प्रति छाया बन,
तुम प्रति पल मुझ में रहती हो।
मैं प्रेम संगिनी बन साथ चलूंगी,
प्रति क्षण मुझसे कहती हो।।
भ्रमित भँवर की भांति नित्य मैं,
तुझमें ही तो लीन रहूँ।
उँगली में उँगली डाल तुम्हारी,
तुम में ही तल्लीन रहूँ।।
बारिश की बूंदें बन कर मैं,
वसुधा में तुझको ढूंढ रहा।
बहती नदियों के कल-कल से,
तेरा रस्ता पूँछ रहा।।
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