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प्रीत वृष्टि कर दो मुझ पर,
मैं सदियों से तेरा प्यासा हूँ।
बह जाने दो इस दृगंब बाँध को,
मैं पूरी उम्र रुहाँसा हूँ।
बादल दृगजल का एक सदी से,
हृदय अम्ब में घुमड़ रहा।
गहरा सागर अरमानों का,
लहरें लेकर उमड़ रहा।
नींद स्वप्न में,स्वप्न सत्य में,
संघर्ष ये प्रति क्षण जारी हैं।
तुमको पाने की अभिलाषा,
हर इच्छा पर भारी है।
है क्या परवशता बतला दो तुम,
हर बंध तोड़ मैं आऊँगा।
तुमको परिणय में बाँध स्वयं,
प्रेम डगर ले जाऊँगा।
यूँ बाट जोहना हर दिन तेरी,
आँखों को पत्थर कर देगा।
आ जाओ गुज़ारिश करता हूँ,.
मैं प्रेम से तुमको भर दूँगा।
दे कर के प्रेम मुझे अपना,
एक नई उमंग से भर दो ना।
बंजर जीवन की चट्टानों पर,
हरियाली ही कर दो ना
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