
Share0 Bookmarks 277 Reads5 Likes
जो अनंत हो कर भी शून्य दिखे वो मैं हूँ।
जो क्षीर हो कर भी बूँद दिखे वो मैं हूँ।
जो पर्वत हो कर भी ज़र्रा दिखे वो मैं हूँ।
जो दरख्त हो कर भी पत्ता दिखे वो मैं हूँ।
हर साँस मैं हूँ एहसास मैं हूँ,
पाताल मैं हूँ आकाश मै हूँ।
जड़ शरीर को श्वांस बख्शे,
वो हवा की आस मैं हूँ।।
प्रेम मैं हूँ गीत मैं हूँ,
रागों में समाया संगीत मैं हूँ।
सृष्टि संचालन के लिये,
कर्म की परिणीत मैं हूँ।।
भाव मैं हूँ कृत्य मैं हूँ,
तांडव और नृत्य मै हूँ।
आदि से चलती हुई,
भ्रांति मैं हूँ दृश्य मैं हूँ।।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments