
एक सुबह जब मैं आंखे खोलूंगा
मै पाऊँगा सामने तुम्हें, खिल खिलाते हुए
एक सुबह जब मैं जगुँगा
मै भी मुस्कुराते हुए नींद भरी आंखो से बाहर आऊँगा,
और कोशिश करूँगा तुम्हारा हाथ पकड़ने की
तब तुम नजरें झुकाते हुए
मेरे पास से उठ जाओगी
और ये कहते हुए खिड़की के पर्दे खोलोगी
कि उठो अब सुबह हो गयी है।
एक सुबह जब मैं आँखें खोलूंगा
मै बिस्तर पर उठ कर बैठ जाऊँगा
और तुम गीले केश मेरी तरफ
छिटकाते हुए पानी की नन्ही बूंदें मुझ पर गिरओगी
और पलट के मेरी तरफ देखोगी
आंखो में लाज भर कर
एक सुबह जब मैं जागूँगा।
खिड़की से झाँकते हुए सूरज की नज़र जब मुझ पर पड़ेगी
तुम अपना पल्लू खोल कर हम दोनों को छुपाओगे
और
मैं हाथ बढ़ा कर तुम्हें खींच लूँगा अपनी बाहों में
एक सुबह....
तुम पलकें झुका कर
कँपकपाते होठों से मेरे सीने में सिमट जाओगे
एक सुबह.....
अपने गुलाबी होठों से रंग दोगे मेरे गाल
और दोनो हथेलियों से अपना चेहरा छुपा लोगे
और मै लाज के पर्दे हटा कर देखूँगा खुद को तुम्हारी गहरी नीली आँखों में
और लिखूंगा हमारे प्रेम की अमर गाथा
एक सुबह....
- अंकित कुशवाहा 'नि:शब्द'
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