अतीत की आशा's image
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वो मई-जून की ठंड याद होगी तुमको भी,

जब हमने एक ही रजाई में कई सुबहें साथ साथ जाग कर बिताई थी।

मै तुम्हारा चेहरा देख कर आँखे खोलता था,

और तुम मेरा चेहरा देख कर कम्बल से बाहर आते थे।।

याद होगा तुम्हें भी....


उन सर्द रातों में ...

उन सर्द रातों में तुम रजाई से अपना चेहरा कुछ ऐसे बाहर निकालते थे,

जैसे एक छोटा कछुआ पहली बार अपने खोल से सर निकाल कर दुनियाँ देखता है

और बसंत की बारिश की तरह मुस्कुराते थे तुम

याद होगा तुम्हें...


तुम्हारे माथे पर एक केसरिया चुंबन देकर

तुम्हें सुप्रभात बोलता था मैं,

और तुम मेरी बनाई गुलाब

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