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गर आज एक दीया बुझ जायेगा,
कल का क्या पता, कल कौन सा पड़ाव आयेगा।।
हिम्मत जो हमने खो दी है आज,
क्या सूरज कल फिर वही सुबह ला पायेगा।।
झरोखों से मत देखो तुम मेरी हार का तमाशा,
कल क्या पता, मेरी जीत का इस्तिहार अखबार मे आयेगा।।
जो समय गया-गवाया अब तक,
शायद कल कुछ नया वो पैगाम दे जायेगा।।
कितनी बार परखती है मिट्टी साँचे मे ढलने से पहले,
क्या पता, कल मुझमें किसी को हीरा नजर आ जायेगा।।
बेबाक नहीं हूँ, मैं अपनी विजय के लिये,
हारा हुआ हर सबक मुझे एक नई जीत दे जायेगा।।
झुक जायेंगे बोलने वालों के सर भी उस दिन,
जो आज कहते हैं, के तुमसे तो कुछ नहीं हो पायेगा।।
- अंकिता सिंह चौहान
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