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तेरे होंठों की हंसी हमे इस कद्र खुश रखती है
जैसे सावन में सूखे पेड़ पौधों को फूल-पत्ती लगती है,
ये मासूमियत ये लहजा लफ्जों में बयां होने वाला नही
इतना है की कभी - कभी वो बातें करती छोटी बच्ची लगती है,
भूल जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता
हमे तो वो इश्क के नुकसान बताते हुए भीं अच्छी लगती है।
जैसे सावन में सूखे पेड़ पौधों को फूल-पत्ती लगती है,
ये मासूमियत ये लहजा लफ्जों में बयां होने वाला नही
इतना है की कभी - कभी वो बातें करती छोटी बच्ची लगती है,
भूल जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता
हमे तो वो इश्क के नुकसान बताते हुए भीं अच्छी लगती है।
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