चराग़ जल रहा है लहू से जिस तरह
कहो जिंदा रहे अब कौन किस तरह
हवाओं से डर कर तूफां बच रहा है
मौसम बिगाड़े अब कौन किस तरह
कोई ज़रूरत नही है मुस्कुराने की
देखते हैं रोता ह
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