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छुप-छुपके उंगलियों से तू क्या लिखता है
बिना काग़ज़ क़लम के तू क्या लिखता है
नज़र आ रहा है मुझे तेरी नज़र में कुछ-कुछ
तू बता कि तेरे नज़र में आखिर क्या दिखता है
देखता हूँ जब तुझे तू देखता रहता है आसमाँ को
ये बता मुझे कि फ़लक पर देखने से क्या मिलता है
मासूमियत तेरी अदाओं में अब आदत बन गई है
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