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क्यों शून्य से टकरा रही हो
इश्क़ को क्यों छुपा रही हो
खुद को क्यों झुठला रही हो
सूखी पलकों को क्यों भीगा रही हो
नींद तो तुम्हे अब आती नही
फिर क्यों बिस्तर बिछा रही हो
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