गज़ल
याद तीरे नज़र किया जाए
दिल के ज़ख़्मों को तर किया जाए
चल के जाना तो ना मुनासिब हैं
ख्वाब में ही सफ़र किया जाए
उस के जलवों का नूर है हर सु
अपना चेहरा किधर किया जाए
प्यार की सब जिसे से निशानी कहें
ऐसा तामीर घर किया जाए
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