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खुद बंजर काटों पे चले है,
न जाने कितने फूलों को सिंच खिलाये वो।
खुद का गला सुख रहा है,
पर सबके प्यास बुझाये वो।
चेहरे पर कितनी सिकुड़न है,
माथे पर सिकन न लाए वो।
कंधे पर बोझ लिए तो है ,
पर किस से जाके बतियाए वो?
~अंजली मिश्रा
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