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सफर में दॆखा है मैने,
उन कामकाजी महिलाओं को
एक हाथ में ऑफिस के कागज,
दूसरे में सब्जियां ले जाते हुए।
सुना है मैने फोन पर उन्हे,
अपने बेटों को समझाते हुए
की बेटा आने में देर(शाम ) हो जाएगी
तो कुछ बनाकर खा लेना।
सुना है उन्हे अपने लड़कों को बताते हुए
की बेटा उस डब्बे में कोने वाली अलमारी पर रखा होगा वो
उसमें इतना नमक पानी डालकर बना लेना
खुद भी खा लेना और पापा को भी खिला देना।
सफर में देखा है मैने
उन कामकाजी महिलाओं को
अपने बच्चों को जीवन जीने के जरूरतों को सिखाते हुए।
~अंजली मिश्रा
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