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नदी बहती है ।
दूसरे नदियों से टकराती है।
कुछ पत्थरों से खेल जाती है।
उनके कुछ अंश खुद में समा लाती है।
पर निरंतर बहती चली जाती है।
कभी किसी से मिलकर उसका रुकना नहीं होता,
क्योंकि उसे पता है रुकना तो उसे सिर्फ समुंद्र से मिलकर है।
जहां खुद के अस्तित्व को खोकर भी वो खुद को पा जाती है।
~अंजली मिश्रा
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