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तुम्हें याद करना
जैसे
दहकती धूप को छूना,
तपते मरुस्थल में रेत-रेत
होकर
अपनी ही
आँखों में चुभना.
तुम्हारा इश्क
जैसे
आग में जलना,
दावानल की कैद में
तड़पना और सुलगना.
छेड़ा है हमीं ने यह
उदास नगमा
अब तुमसे भी क्या
शिकवा करना
अनिता सभरवाल
#poetry
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